17 जनवरी, 2008

अमृत



मकसदों की आग तेज हो
मनोबल की हवाएँ हो
तो वो आग बुझती नहीं है
मंजिल पा कर ही दम लेती है...
आँधियाँ तो नन्हें दीपक से हार जाती हैं
सच है ,
क्षमताओं को बढाने के लिए
आँधी तूफ़ान का होना ज़रूरी होता है...
प्रतिभाएं तभी स्वरूप लेती हैं
जब वक़्त की ललकार होती है....
जो ज़मीन बंज़र दिखाई देती हैं
उससे उदासीन मत हो....
ज़रा नमी तो दो
फिर देखो वह क्या देती है
हाथ , दिल, मस्तिष्क , दृष्टि लिए
प्रभु तुम्हारे संग हैं
सपनो की बारीकियां देखो
फिर हकीकत बनाओ....
तुम्हारे ऊपर है
हाथ को खाली देखते हो
या सामर्थ्यापूर्ण!
मन अशांत हो
तो घबराओ मत
याद रखो ,
समुद्र मंथन के बाद ही
अमृत निकलता है....

6 टिप्‍पणियां:

  1. प्रभु तुम्हारे संग हैं
    सपनो की बारीकियां देखो
    फिर हकीकत बनाओ....
    तुम्हारे ऊपर है
    हाथ को खाली देखते हो
    या सामर्थ्यापूर्ण!
    मन अशांत हो
    तो घबराओ मत
    याद रखो ,
    समुद्र मंथन के बाद ही
    अमृत निकलता है....

    सही कहा ...रात के बाद दिन है ..दुःख के बाद ही सुख है !

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 02 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. सपनो की बारीकियां देखो
    फिर हकीकत बनाओ....

    बहुत ही सुंदर मनोबल बढाती रचना,सादर नमन रश्मि जी

    जवाब देंहटाएं
  4. तुम्हारे ऊपर है
    हाथ को खाली देखते हो
    या सामर्थ्यापूर्ण!...

    समुद्र मंथन के बाद ही
    अमृत निकलता है....
    अत्यंत प्रभावी, प्रेरक !!!

    जवाब देंहटाएं
  5. जी सच है, मंथन के बाद ही अमृत निकलता है।
    सुंदर प्रेरक अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...