14 सितंबर, 2008

माँ माँ ...................


माँ,माँ
डर लगता है....................
माँ ने हाथ का घेरा बनाया
सीने से लगा लिया !
माँ,माँ,
बुरे सपने आते हैं...........
माँ ने तकिये के नीचे
हनुमान चालीसा रखा,
माथे पर ॐ लिखा
या फिर तकिये के नीचे
कैंची (लोहा)रख दी !
माँ,माँ ,
मेरी तबीयत ठीक नहीं.....................
माँ ने मिर्चा लेकर
नज़र उतारी !
.............................
अब हम बड़े हो गए हैं !
अब माँ को डर लगता है,
बुरे सपने आते हैं,
तबीयत ख़राब रहती है.......
बड़ी उकताहट होती है !
क्या माँ ,
दिमाग सठिया गया है !
झूठमूठ की घबराहट !
इस उम्र में ऐसा होता है !
....................
माँ बेचारगी से मुस्कुराती है,
ख़ुद अपने तकिये के नीचे हनुमान चालीसा रख लेती है
और करवट बदलकर
सोने का भ्रम देती
टुकुर-टुकुर समय को ताकती है..........................!!!

24 टिप्‍पणियां:

  1. kamal ka moti hai


    man jab apne hee takiye ke neeche
    hanuman chalisa rakh ek sotee hai
    main beewee kee taraf peeth kar leta hoon
    aur aankh bahut rotee hai
    man umr ke har mod par abs ma hotee hai

    Anil

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  2. माँ का बिलकुल सही रूप दिखाया है दीदी...बहुत बढ़िया..!

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  3. बहुत ही सुन्दर चित्रण खीचां हे आप ने, जो बिलकुल सच हे, जब हम नही बोलते थे, तुतला कर बोलते थे तो मां बाप हमारी सब बात समझते थे, ओर बडे हो कर हम इन्ही मां बाप की बात अन्सुनी करते हे जेसे समझते ही नही.
    बहुत सुन्दर रचना, धन्यवाद

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  4. kyun waqt badal jata hai log wohi hote hai..ahsas badal jate hai

    dil ko jakham apne hi laga jate hai kabhi jaan ke kabhi anjane mein.

    dil ko rula gayee..na jane kyun dard ka ahsas bhar gayee rachna

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  5. माँ.............जो माँ और उसकी ममता को भूल गया,वो तो एक तरह से खुद को ही भूल गया!उसका तो असितत्व ही नहीं रहा! हर कोई जानता है 'माँ' क्या होती है.....सबलोग इस अद्वितीय शब्द से और साथ ही साथ इस अद्वितीय रिश्ते से वाकिफ है.......हमें अपनी जान देकर भी माँ का ख्याल रखना है,क्योंकि हमारी जान भी तो उसी की ही दी हुई है....और अगर ये जिंदगी माँ के काम न आये,तो हमें ऐसी जिंदगी जीना भी नहीं है!.............और अंत मे अपनी कुछ पंक्तियाँ अपनी माँ को सुनाना चाहूँगा,ताकि माँ को ऐसा न लगे की मै उसे और बचपन की वो सारी बात भूल गया हूँ................
    'माँ
    तू सुन रही है न
    मेरी आवाज़
    हाँ ,सुन
    तू समझती है
    अब
    मै
    बड़ा हो गया हूँ
    भूल गया हूँ
    बचपन की वो सारी बात
    नहीं माँ ,नहीं
    मुझे
    आज भी याद है..................."
    एक बेहद ही खुबसूरत रचना माँ

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  6. oh what a b'ful amazing sentiments.
    so true wording.

    maaa....
    kya hum sachumuch bade ho gaye hai?

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  7. पता नहीं इसे विडंबना कहूं या नियति जिस से सभी को दो-चार होना पड़ता है.
    अत्यंत पारदर्शिता के साथ आपने न केवल रिश्ते को अपितु समय का अंकन करने का यत्न किया है, सार्थक !
    माँ संसार का अत्यंत श्रधय और सुन्दर शब्द.
    पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि माँ रिश्तों से कहीं ऊपर होती है.

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  8. Ek sachchi rachna, wakai hum samay ke sath us maa ke prati bhi laparbah ho jate hai, jo taumr apne neh ka aachal humpar banaye rahti hai

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  9. aapne maa ke pyar or badhti umar ke saath badhti bebasi ka sajeeev chitran kiya hai. maine bhi maa ko apni kavita se dekhne ki koshish ki par ant me mujhe bhi maa ki bebasi par aakar hi kavita khatam karni padi.
    sach maa sirf maa ho sakti hai kuch or nahi. is bhavpooran bhenth ke liye dhanyavaad


    Rakesh Kaushik

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  10. बहुत ही सच्ची रचना है...जितना प्यार माँ बाप बच्चों से करते हैं...उतना बच्चे माँ बाप से कभी नही करते !!!

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  11. मातृत्व के अनवरत संघर्षरत भावों को बखूबी उकेरा है आपने ,शब्दों में.....
    उसी माँ को बेटे- बेटी बात -बात पर कहते है कि तू नही समझेगी माँ, रहने दे !...जिसने उनकी हर एक बात हर एक इशारे को तब भी समझा था जब वो कुछ बोलना तक नही जानते थे .

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  12. इस दुनिया को माँ की महिमा सबको सुनानी है
    माँ और बेटे के रिश्ते की ये तो अमर कहानी है
    माता ने बेटे को जन्म दिया है
    बाप ने बेटे का सब कुछ किया है
    तुने उसका किया बदला दिया है
    किसके भरोसे छोड़ दिया है
    माता-पिता को दुःख देके,कहाँ तू सुख पायेगा
    जो माँ की ना सुनेगा तो तेरी कौन सुन पायेगा

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  13. मेरी मा भी टुकुर-टुकुर समय को ताकती है कि कब मै वपस लौटुंगा !!पिछली बार जब घर गया था उन्होने मेरी नजर भी उतारी थी!! आपने आंखे नम कर दी!!

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  14. "माँ" शब्द में ही सम्पूर्ण ब्रह्मांड समाया हुआ है,
    जानती थी माँ की महिमा को मानती भी थी, पर उस बेबसी का एहसास शायद आज ही हुआ है,
    कभी हमारी ज़िन्दगी होता है ये एक शब्द, तो क्यूँ बाद में सब बदल जाता है,
    क्या समय का चक्र इतना बलवान है कि हमारे एहसासों का खून कर सके.....
    क्यों उस हाथ और उस दामन को भूल जाते है हम जिसकी वजह से हमारा अस्तित्व है.......
    जब उस हाथ को हमारे हाथ कि ज़रूरत होती है तो क्यों हम उस ज़रूरत को महसूस नहीं कर पाते.......

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  15. bahut sundar likha hai....ek maa ki mamta aur lachaargi dono hi bahut khoob utaari hain aapne.

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  16. सही बात कही है आपने,,ये आज के समय का कटु सत्य है,,,जो माता-पिता अपने बच्चो को बचपन में इतना प्यार देते है,,जिनको अपने बुढापे की लाठी समझते है,,,वो ही समय आने पर ऐसा करते है,,,जबकि माँ-बाप के प्यार को तो कभी पूरा भी नहीं किया जा सकता...

    सचमुच आपकी इस कविता ने दिल जीत लिया..

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  17. चाँद से बाँधकर के सोते हैं
    नरम किरनों की डोरियाँ बच्चे

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  18. सच ही लिखा है आपने ... माँ हमको समझती है .. और हम ? हम माँ को नहीं समझ पाते .. उमर के पड़ाव में कई लोग वृद्ध माँ को इग्नोर कर अपने नए संसार में खो जाते है .. और माँ टुकुर टुकुर मुस्कुराती है ..आशीर्वाद देती है...

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  19. माँ के प्रेम की उत्कृष्ट और भावभीनी प्रस्तुति..आभार.

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  20. आदरणीय रश्मि प्रभा जी ....माँ शब्द ही एक कविता है ..आपने इतनी कोमलता और सुन्दर भावों से माँ को उत्कृष्ट कृतज्ञता संप्रेषित की ...मन भाव विभोर हो गया ...अपने बचपन में लौट चला मैं....मेरी माँ ने आशीष में फैला दी अपनी कोमल हथेलियाँ....मन भर आया आदरणीय डा० नूतन जी आपका भी कोटि कोटि अभिनन्दन .....
    सादर !!!

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