03 सितंबर, 2012

अर्थ का अनर्थ (लघुकथा )


एक बार ईश्वर साधारण वेश में धरती पर आए .... एक व्यक्ति ने पूछा - क्या तुमने अँधेरे को देखा है ? ईश्वर ने कहा - मैं खुद ही अँधेरा भी हूँ , प्रकाश भी ...
व्यक्ति ने गाँव में जाकर कहा - उस आदमी से दूर रहना , भ्रमित करते हुए मुझे ही अँधेरा साबित कर रहा है !
ईश्वर प्रगट हुए - सबने हाथ जोड़ लिए ,
ईश्वर मुस्कुराये - यही प्रकाश और अँधेरे का फर्क है ...

बच्चों को कथा सुनाते हुए उसी गाँव के एक व्यक्ति ने कहा - एक बार मेरे कहे को भी गलत मान सब मुझसे दूर हो गए थे .... वहीँ खड़ा एक अन्य व्यक्ति इस कहानी को सुन रहा था , अपना निष्कर्ष ले वह पंचायत में गया और बोला - " बच्चों के बीच कहानी के माध्यम से वह आदमी खुद को भगवान् बना रहा है ..."
कुछ ने मान लिया , कुछ मुस्कुराकर बढ़ गए -
इससे क्या सीख मिलती है ?

30 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सारगर्भित कथा है रश्मिप्रभाजी !
    जाकी रही भावना जैसी
    प्रभु मूरत देखी तिन तैसी !
    शब्दों को तोड़ मरोड़ कर मन माफिक निष्कर्ष पर पहुँचना दुनिया की रीत है ! सार्थक सीख देती सुन्दर कथा !

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  2. चोरों को सारे नज़र आते हैं चोर....
    बहुत अच्छी कथा...गहन अर्थ लिए.

    सादर
    अनु

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  3. भ्रम पैदा करने वालों की कमी नहीं .... जैसे हम स्वयं होंगे वैसा ही दूसरों के लिए सोचेंगे ...

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  4. यही कि लोग सुनकर भी नही सुनते..या वही सुनते हैं जो उन्हें रुचता है..

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  5. तुम जो सुनना चाहते, तुम जो देखना चाहते हो.....ये जगत उसी का प्रतिबिम्ब बन जाता है ।

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  6. तुम जो सुनना चाहते, तुम जो देखना चाहते हो.....ये जगत उसी का प्रतिबिम्ब बन जाता है ।

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  7. हर कोई अपने अपने अनुसार दूसरे के कहे का मतलब निकालता है ...

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  8. कमेन्ट में मैं एक कहानी ही कहूँ ?
    अगर सही हो तो ठीक नहीं तो spam की शोभा बढ़ाने दीजिएगा !
    एक बार ,एक साधू अपने कुछ शिष्यों के साथ घूमने निकला ....
    एक स्थान पर कुछ लोग मिले ... साधू को प्रणाम किये .... साधू उन्हें आशीर्वाद दिए कि * जमे रहो * ,और आगे बढ़ चले !
    कुछ दूर जाने पर ,फिर से कुछ लोगो की टोली मिली वे लोग भी साधू को प्रणाम किये .... साधू उन्हें आशीर्वाद दिए कि * उजड़ जाओ* ,और आगे बढ़ चले !
    शिष्यों को बहुतेआश्चर्य हुआ ,वे अपने गुरु से आज्ञा ले ,सवाल किये कि आप दो जगह ,दो तरह का ,आशीर्वाद क्यों दिए ?
    साधू बोले :- पहले वाले लोगों की प्रवृति(स्वभाव) बुरी थी इसलिए उन्हें * जमे रहो * का आशीर्वाद दिए ताकि वे बुराई फैला ना सकें जहां हैं वहीँ तक सिमित रहे !
    और दुसरे जगह वाले लोग उत्तम प्रवृति(स्वभाव) के थे इसलिए उन्हें * उजड़ जाओ* का आशीर्वाद दिए ताकि वे जहां-जहां जाएँ अच्छाई फैला सकें ,

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  9. अर्थ का अनर्थ बनते देर नहीं लगती...जरूरत होती है धैर्य रखने की...सब अपनी सोच के अनुसार ही दूसरों को आंकते हैं|

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  10. साधना वैद्य जी से सहमत हूँ, जिसका जैसा मन और विचार होते हैं वह वैसा ही सोचता है... सीख देती सुन्दर कथा

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  11. सोए हुए आदमी को जगाया जा सकता है,
    लेकिन जगे हुए को जगाने का मतलब पानी
    में लाठी पीटने जैसा है।

    सौ फीसदी गारंटी है कि ये कथा भी समझ में
    नहीं आएगी।

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  12. बहुत सार्थक कथा ....हम कुछ भी कहते रहें ...सामने वाला अपनी ही सोच से हमारी बात ग्रहण करता है ...इसलिए हमें तटस्थ ही रहना चाहिए ...!!अपनी बात पर दृढ ...!!

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  13. हर व्यक्ति की अपनी सोच होती है . कोई किसी की सोच को बदल भी नहीं सकता .

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  14. बहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति ..आभार

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  15. meri samjh se bahar..do baar padhna pada tb jaake... aap ka mere blog par ab naa aana udwelit karta hai...

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  16. जाकी रही भावना जैसी
    प्रभु मूरत देखी तिन तैसी यही एक मात्र सार है इस कहानी का ...आप क्या कहती है ?

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  17. अर्थ का अनर्थ...
    दूसरो की बातो में आकर अपनी मानसिकता बना लेना...
    चोर को सभी चोर दिखाई देते है..
    सिख देती लघु कथा...
    :-)

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  18. kshmaprathi hoon ma"am..mujhe nahi pta tha aapke swasthay ke baare mein.. mann chnchal hai shikayat kar dali.. behtar swasthaylabh hetu s-hirday prathnaayein..

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  19. आजकल कुछ ज्यादा ही होने लगा है !

    मोहब्बत यह मोहब्बत - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

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  20. अँधेरे और प्रकाश को साथ साथ समझ जाना ज्ञान की प्राप्ति है।

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  21. कुछ ने मान लिया , कुछ मुस्कुराकर बढ़ गए - गहन भाव लिए प्रेरक प्रस्‍तुति ...आभार

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  22. हर कहानी से मनुष्य अपनाही अर्थ निकालता है,
    है तो इश्वर की ही सत्ता पर अंधेरा भी कम ताकतवर नहीं है !.

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  23. अँधेरा और प्रकाश हमेशा साथ साथ रहते है मगर समझनेवाले प्रकाश को अँधेरा और अँधेरे को प्रकाश समझने की भूल कर बैठते है ..मगर प्रकाश तो प्रकाश ही है रोशनी देगा ही..अर्थ और अनर्थ लोग जानते है और समझते भी है . अच्छी सीख देती रचना

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  24. समझ इतना ही आ पाया
    भगवान कभी समझदार
    आदमी से मिलने
    नहीं जा पाया
    इसी लिये आदमी में
    अपना सिक्का अभी
    तक नहीं जमा पाया !

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  25. भ्रम जाल फ़ैलाने वाले अनगिनत है , मगर एक दिन सब फंद छूट ही जाते हैं !

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  26. गहन! विश्वास, श्रद्धा से ही जीवन सार्थक है..
    आपके सुलभ स्वास्थ्य की कामना करता हूँ..
    सादर
    मधुरेश

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