30 दिसंबर, 2012

उसके नाम - शुभकामनायें- :(



नया साल तुम्हारी जिजीविषा को 
विजिगीषा बनाये 
तुम्हारी रगों में वो सारी शक्तियां दौड़ें 
जो दुर्गा की रचना में 
सभी देवताओं ने दी थी 
चंड मुंड शुम्भ निशुम्भ 
महिषासुर जैसे असुरों का सर्वनाश तुम स्वयं करो 
आदिशक्ति का संचार खुद महादेव ने किया है 
तुम्हारी स्वाभाविक स्थिति का भान 
तुम्हें ही करवाने के लिए 
उन्होंने खुद को भी दुःख दिया 
उस दुःख का मोल चुकाओ 
अपनी सामर्थ्य का हर शस्त्र उठाओ 
........... 
सीता,अहिल्या बनने का युग नहीं 
ना ही खुद को शापित अनुभव करने का युग है 
इंतज़ार करना कमजोरी है 
एक एक चिंगारी तुम्हारे अन्दर है 
धधको,भभको 
हर घृणित अपराधी को 
गलाओ,सुखाओ ........ जला डालो 
अपने स्वत्व का अभिषेक खुद करो 
'बेटी' होने की गरिमा को 
महिमामंडित करो 
...........
और हर वर्ष गर्व से कहो 
'यह नया वर्ष मेरा है 
मेरी माँ का है 
मेरे पिता का है 
मेरे भाई का है 
मेरे अपनों का है ' 
नया वर्ष स्वतः उनलोगों के सर पर हाथ रखेगा 
जो यकीनन इन संबंधों के घेरे में आते हैं .......

नया वर्ष आजीवन सत्य का हो 
न्यायिक हो 
सफल हो 
शिव हो सुन्दर हो 
विघ्नहर्ता के क़दमों से इसका आरम्भ हो 
- शुभकामनायें- :(

22 दिसंबर, 2012

दामिनी - अरुणा .... कौन कौन !!!


यह दामिनी है 
वह अरुणा थी 
तब भी एक शोर था 
आज भी शोर है ......... 
क्यूँ ? क्यूँ ? क्यूँ ?
............. 

शोर की ज़रूरत ही नहीं है 
नहीं है ज़रूरत कौन कब कहाँ जैसे प्रश्नों की 
क्यूँ चेहरा ढंका .... ???????
कौन देगा जवाब ?
जवाब बन जाओ 
हुंकार बन जाओ 
हवा का झोंका बन जाओ 
उदाहरणों से धरती भरी है
उदहारण बन जाओ  .........

पुरुषत्व है स्त्री की रक्षा 
जो नहीं कर सकता 
वह तो जग जाहिर नपुंसक है !
बहिष्कृत है हर वो शक्स 
जो शब्द शब्द की नोक लिए 
दर्द के सन्नाटे में ठहाके लगाता है 
उघरे बखिये की तरह घटना का ज़िक्र करता है 
फिर एक पैबंद लगा देता है 
च्च्च्च्च की !

याद रखो -
यह माँ की हत्या है 
बेटी की हत्या है 
बहन की हत्या है 
पत्नी की हत्या है 
............... कुत्सित विकृत चेहरों को शमशान तक घसीटना सुकर्म है 
जिंदा जलाना न्यायिक अर्चना है 
दामिनी की आँखों के आगे राख हुए जिस्मों को 
जमीन पर बिखेरना मुक्ति है ...........
...........
इंतज़ार - बेवजह - किसका ?
और क्यूँ?
ईश्वर ने हर बार मौका दिया है 
बन जाओ अग्नि 
कर दो भस्म 
उन तमाम विकृतियों को 
जिसके उत्तरदायी न होकर भी 
तुम होते हो उत्तरदायी !
......
ढंके चेहरों को आगे बढकर खोल दो 
नोच डालो दरिन्दे का चेहरा 
या फिर एक संकल्प लो 
- खुद का चेहरा भी नहीं देखोगे 
तब तक .... जब तक दरिन्दे झुलस ना जायें 
उससे पहले  
जब जब देखोगे अपना चेहरा 
अपनी ही सोच की अदालत में 
पाप के भागीदार बनोगे 
......... 
जीवित लाशों की ढेर से दहशत नहीं होती तुम्हें ?
मुस्कुराते हुए 
अपनी बेटी को आशीर्वाद देते 
तुम्हारी रूह नहीं कांपती - कि 
कल किसके घर की दामिनी होगी 
किसके घर की अरुणा शानबाग 
और इस ढेर में कोई पहचान नहीं रह जाएगी !!!
.......

18 दिसंबर, 2012

कन्या भ्रूण हत्या मजबूरी है !!!:( - (अपवाद होते हैं)


सिसकियों ने
मेरा जीना दूभर कर दिया है 

माँ रेsssssssssssssss ............

मैं सो नहीं पाती 
आखों के आगे आती है वह लड़की 
जिसके चेहरे पर थी एक दो दिन में माँ बनने की ख़ुशी 
और लगातार होठों पर ये लफ्ज़ -
'कहीं बेटी ना हो ....!'
मैं कहती - क्या होगा बेटा हो या बेटी 
!!!
अंततः उसने बेरुखी से कहा -
आप तो कहेंगी ही 
आपको बेटा जो है ....'
मेरी उसकी उम्र में बहुत फर्क नहीं था 
पर मेरे होठों पर ममता भरी मुस्कान उभरी - बुद्धू ...
!!!

आज अपनी ज़िन्दगी जीकर 
माओं की फूटती सिसकियों में मैंने कन्या भ्रूण हत्या का मर्म जाना 
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
नहीं फर्क पड़ता शिक्षा से 
कमाने से 
लड़कियों के जन्म पर उपेक्षित स्वर सुनने को मिलते ही हैं 
उन्हें वंश मानना किसी को गवारा नहीं 
वे असुरक्षित थीं - हैं ....
ससुराल में किसके क़दमों के नीचे अंगारे होंगे 
किसके क़दमों के नीचे फूल - खुदा भी नहीं जानता 
.... रात का अँधेरा हो 
या भरी दोपहरी 
कब लड़की गुमनामी के घुटने में सर छुपा लेगी 
कोई नहीं जानता 
नहीं छुपाया तो प्रताड़ित शब्द 
रहने सहने के ऊपर तीखे व्यंग्य बाण 
जीते जी मार ही देते हैं 
तो गर्भ में ही कर देती है माँ उसे खत्म !!!
= नहीं देना चाहती उसे खुद सी ज़िन्दगी 
गुड़िया सी बेटी की ज़िन्दगी 
खैरात की साँसें बन जाएँ - माँ नहीं चाहती 
तो बुत बनी मान लेती है घरवालों की बात 
या खुद निर्णय ले लेती है 
.........
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ़ बोलने से क्या होगा 
कन्या रहेगी बेघर ही 
या फिर करने लगेगी संहार 
......
आन्दोलन करने से पहले अपने विचारों में बदलाव लाओ 
जो सम्भव नहीं - 
तो खुद को विराम दो 
और सुनो उन सिसकियों को 
जिन्होंने इस जघन्य अपराध से 
आगे की हर दुह्संभावनाओं के मार्ग बंद कर दिए 
सीता जन्म लेकर धरती में जाये 
उससे पहले बेनाम कर दिया उन्हें गर्भ में ही 
....
आओ आज मन से उन माओं के आगे शीश झुकाएं 
एक पल का मौन उनके आँचल में रख जाएँ 
.................. :(

11 दिसंबर, 2012

कुछ तो है ...



मैं न यशोदा न देवकी 
मैं न राधा न रुक्मिणी न मीरा 
नहीं मैं सुदामा न कृष्ण न राम 
न अहिल्या न उर्मिला न सावित्री 
.......... मैं कर्ण भी नहीं 
नहीं किसी की सारथी 
न पितामह न एकलव्य न बुद्ध 
नहीं हूँ प्रहलाद ना गंगा न भगीरथ 
पर इनके स्पर्श से बनी मैं कुछ तो हूँ 
नहीं - 
तो फिर क्यूँ लहराता है बोलता हुआ मौन मेरे भीतर 
क्यूँ मैं कुम्हार की तरह अपनी ही मिटटी से 
हर दिन ये सारे मूरत गढ़ती हूँ 
क्यूँ मेरे भीतर ॐ की ध्वनि गूंजती है 
अजान के स्वर निःसृत होते हैं 
क्यूँ मैं अहर्निश अखंड दीप सी प्रोज्ज्वलित हूँ 
क्यूँ .............. एक पदचाप मेरे साथ होती है 
क्यूँ एक परछाईं मुझमें तरंगित होती है 
..........
मैं नहीं कहती कि पत्थर में भगवान् है 
पर ........... प्राणप्रतिष्ठा करनेवाली शक्ति 
खुद को - कहीं भी कभी भी 
प्रतिष्ठित कर सकती है न ???

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...