25 अक्तूबर, 2013

उत्तर के बियाबान में बस सिर्फ तुम्हारी तलाश है !!!


आँचल की गांठ से 
चाभियों का गुच्छा हटा 
हर दिन 
तुम एक भ्रम बाँध लिया करती  
सोने से पहले 
सबकी आँखें पोछती 
थके शरीर के थके पोरों के बीच 
भ्रम की पट्टी बाँध  …
हमारे सपनों को विश्वास देती  
. !!!
अब जब भ्रम टूटा है 
सत्य का विकृत स्वरुप उभरा है 
तब  …
एथेंस का सत्यार्थी बनने का साहस 
तुम्हारे कमज़ोर शरीर के सबल अस्तित्व में 
पूर्णतः विलीन हो चुका है !
तुम सच कहा करती थी -
अगर हर बात से पर्दा हटा दिया जाये 
तो जीना मुश्किल हो जाये  …. 
तुम्हारे होते सच को उजागर करने की 
सच कहने-सुनने की 
एक जिद सी थी 
अब - एक प्रश्न है कुम्हलाया सा 
कि सच को पाकर  होगाभी क्या !!!
कांपते शरीर में 
न जाने कितनी बार 
कितने सत्य को तुमने आत्मसात किया 
दुह्स्वप्नों के शमशान में भयभीत घूमती रही 
और मोह में बैठी 
हमारे चमत्कृत कुछ करगुजरने की कहानियाँ सुनती गई 
जो कभी घटित नहीं होना था  … 
तुम्हारा सामर्थ्य ही मछली की आँखें थीं 
जो हमें अर्जुन बनाती 
तुम्हारी मुस्कान - हमारा कवच भी होतीं 
और हमारे मनोरथ की सारथि भी 
… अब तो न युद्ध है 
न प्रेम 
है - तो एक सन्नाटा 
जिसे मैं तुमसे मिली विरासत की खूबियों से 
तोड़ने का प्रयास करती हूँ 
…. 
कृष्ण,पितामह,कर्ण,अर्जुन,विदुर  …. 
सबकी मनोदशा चक्रव्यूह में अवाक है 
प्रश्नों का गांडीव हमने नीचे रख दिया है 
क्योंकि  ……
अब कहीं कोई प्रश्न शेष नहीं रहा 
उत्तर के बियाबान में हमें सिर्फ तुम्हारी तलाश है !!!

17 अक्तूबर, 2013

खोलो अपनी पिटारी



अपनी ख़ामोशी 
जो मैंने नहीं गढ़ी 
फिर भी 
वक़्त की माँग पर 
जिसे मैंने स्वीकार किया 
वहाँ मोह की आकृतियाँ 
मेरे कुछ कहने की प्रतीक्षा में बैठी होती हैं 
…. !
मैं तो बातों की पिटारी रही हूँ 
जब पिटारी में कुछ नहीं होता 
तो भी मनगढंत बातें सुनाती हूँ 
पता है मुझे -  
खालीपन कभी मुस्कुराता नहीं 
और मैंने हमेशा चाहा है 
कि शून्य में खिलखिलाहट भर जाए 
ताकि तुम्हारे एकांत में 
यादें मेरी बातों की 
तुम्हें गुदगुदा जाए 
तुम्हारा चेहरा खिल जाये 
और खालीपन भी आश्चर्य में पड़ जाये !!
…… 
गीत,कहानी,नकल,साहस, ……। 
जाने कितनी सारी बातें हैं 
फिर भी सन्नाटा !!!
एकटक देखती आँखों का इंतज़ार 
मैं समझती हूँ 
तभी तो आज  …………… 
दुलारती हूँ उन चेहरों को 
और कहती हूँ -
तुम भी तो कुछ कहो !
खोलो अपनी पिटारी 
कुछ नहीं तो वो जादू दिखाओ 
जो मैंने तुम्हें दिखाया,सिखाया 
गढ़ो कोई कहानी 
या कोई छोटी सी बात 
और खिलखिलाते जाओ मेरे संग 
तब तक 
जब तक 
झूठमुठ के खींचे गए सन्नाटे शर्मा न जाएँ 
डर कर भाग न जाएँ 
………………… 
पता है न 
पलक झपकते सारे दृश्य बदल जाते हैं 
इंतज़ार के सारे मौके ख़त्म हो जाते हैं 
और तब 
सन्नाटा बहुत भयानक होता है 
शून्य में कही अपनी बातें 
ख़ुद तक लौट आती हैं 
और  ……… !!!!!!!!
तो कहो कुछ तुम 
मैं तो पिटारी लिए खड़ी ही हूँ :)

06 अक्तूबर, 2013

समय और ईश्वर के आगे खुद को मुक्त कर दो





सन्देश तो बहुत मिले होंगे 
कुछ पोस्टकार्ड 
कुछ अंतर्देशीय 
कुछ लिफाफे 
कुछ मेल 
…………. पर 
आँखों की खामोश पुतलियों पर लिखे सन्देश 
मिले तुमको ?
किसी और ने गर पढ़ा भी 
तो क्या हुआ 
सन्देश के हर्फ़ तुम्हारे लिए थे 
तुम जानते हो - है न ? 

होठ सी लेने से 
अनभिज्ञता दिखाने से 
तुम मानते हो 
कि उसे मान लिया गया ?
नहीं  …. 
तुम्हारे चेहरे पर जाने कितने सन्देश हैं 
जिसे तुम्हारे अपने पढ़ते हैं 
अपने - जिनसे तुम्हारा रक्त सम्बन्ध है !
वे पढ़ते ही नहीं 
चुनते जाते हैं उन संदेशों को 
संभालकर रखने के लिए 
पर एक बार तुम्हें कहना होगा 
अपने होठों की सीलन खोलकर 
नाहक इधर-उधर भटकते क़दमों को रोककर !!!
…। 
यह समय का मौका है 
ईश्वर का करिश्मा है 
कि तुम्हारी बेचैनी एकत्रित हो गई है 
चुप्पी में जिस व्यक्तित्व को तुमने अनदेखा किया 
उसे बताने का वक़्त आ गया है 
एक विश्वास रखो -
क्षणांश को क्रोधित होकर भी 
प्यार की ताकत सबकुछ समेट लेती है 
परिस्थितिजन्य गलतियों पर 
स्नेहिल स्पर्श से क्षमा की अनुभूति देती है 
वे अपने - जो दूर नज़र आने लगे थे 
यक़ीनन उनका विश्वास - 
तुम्हें हँसने का 
बिलखकर रोने का 
कुछ भी कहने-सुनने का 
इत्मीनान भरा साहस देगी 
एक दूसरे की आँखों में उभरे संदेशों को 
बताने का मौका देगी  … 
बस-
समय और ईश्वर के आगे खुद को मुक्त कर दो 

दौड़ जारी है...

 कोई रेस तो है सामने !!! किसके साथ ? क्यों ? कब तक ? - पता नहीं ! पर सरपट दौड़ की तेज़, तीखी आवाज़ से बहुत घबराहट होती है ! प्रश्न डराता है,...