23 सितंबर, 2015

सचमुच इतना ही सहज था सबकुछ ?






ऐसे तो सहज ही रहती हूँ
बड़ी सहजता से
बड़ी से बड़ी तकलीफ के क्षणों को
शब्दों में बाँध देती हूँ
लेकिन समानान्तर
प्रलाप करते मस्तिष्क के कोनों से
रेगिस्तानी आँखों से
शून्य में अटके वक़्त से
करती हूँ सवाल
क्या सचमुच इतना ही सहज
था सबकुछ ?
मासूम भयभीत आँखें
ममता के थरथराते पाँव
और गंदगी के ढेर पर
कोने में सिमटी उस लड़की की विवशता
जो मैंने देखी है
क्या उसका हिसाब-किताब इतना आसान है
कि जोड़-तोड़ से उसका हल निकाल दिया जाए !!!
....
हल तो हमने भी नहीं निकाला था
वीरान राहों पर
सपनों के अदृश्य दीये रखते हुए
हमने बस मान लिया था
कि हमने जीने का हल निकाल लिया है !
डरकर बुना हुआ हर दिन
झूठ पर अड़ा सत्य
कोई हल नहीं था
!!!
कितने सारे उपद्रव खड़े थे आगे
इससे जुझो तो दूसरा
दूसरे से निकलो तो तीसरा
लगता था रक्तबीज के रक्त बह रहे हैं !
मैं काली' का रूप लेना चाहती थी
पर शिव हमेशा मेरे आगे लेट गए !!

शिव के आगे आने का मान देना था
पर काली का आवेश ?
क्या सहज सरल था विरोध की आग को
अमृत की तरह पीना !

नहीं,
नहीं था सरल मीरा का विषपान
उनकी हँसी
साधुओं की मंडली में उनका सुधबुध खोना
मूर्ति में समाहित हो जाना  …
कथन की सहजता
जीने की विवशता में
बहुत विरोधाभास होता है
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!! 

9 टिप्‍पणियां:

  1. आभास होना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है और उसके होने के साथ विरोधाभास भी हमेशा रहा है । बहुत सुंदर रचना ।

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  2. सच कहा आपने
    "जीने की विवशता में
    बहुत विरोधाभास होता है"

    बेहतरीन

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  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-09-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2108 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  4. सच विषम परिस्थितियों में हर किसी के लिए जीना सरल नहीं..धरती पर जो भी जन्म लेता है उसके लिए जीवन सरलता से जी लेना कतई आसान नहीं .. .. भगवान राम हो यह कृष्णा, ईसा हो कोई पैगम्बर वे भी सरलता से न जी पाये न बता सके ...
    बहुत सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति

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  5. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन रामधारी सिंह 'दिनकर' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  6. जीने की विवशता में
    बहुत विरोधाभास होता है...बहुत सुंदर लि‍खा है दी..

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  7. सहजता तो स्वतः स्फूर्त होती है...जहाँ भी प्रयास हुआ खो जाती है...

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  8. कथन की सहजता
    जीने की विवशता में
    बहुत विरोधाभास होता है

    ...बिलकुल सच कहा है..अंतस को छूती बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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