03 जनवरी, 2016

खैर





नहीं कर सकूँगा लक्ष्यभेद अब केशव
द्रोणाचार्य के आगे नतमस्तक होना भी मुमकिन नहीं
पितामह की वाणशय्या के निकट बैठ लूँगा
पर,
कोई अनुभव,
कोई निर्देश नहीं सुन सकूँगा
निभाऊँगा पुत्र कर्तव्य माता कुंती के साथ
पर
उनकी ख़ामोशी को नज़रअंदाज नहीं कर सकूँगा
पूरे हस्तिनापुर से मुझे रंज है
जिसने भ्राता कर्ण का परिचय गुप्त रखा
और मेरे हाथों ने उनको मृत्यु दी
......
नहीं केशव नहीं
अब मैं गीता नहीं सुन सकूँगा !!!
०००
अर्जुन,
गीता तो मैं कह चुका
सारे प्रश्न-उत्तर दिखला चुका
पुनरावृति की ज़रूरत मुझे है भी नहीं
ज़रूरत है तुम्हारे पुनरावलोकन की  ...
सही है,
कैसे नज़रअंदाज कर सकोगे तुम
कुंती की गलती को
तुम बस द्रौपदी को दाव पर लगा सकते हो
 दीन हीन देख सकते हो चीरहरण !
एकलव्य के कुशल लक्ष्यभेद पर
गुरु द्रोण से प्रश्न कर सकते हो
अभिमन्यु की मौत पर
बिना सोचे संकल्प उठा सकते हो  ...
तुम्हें ज़रूरत ही क्या है
औरों की विवशता समझने की
क्योंकि तुम्हारी समझ से
एक तुम्हारा दुःख ही प्रबल है !!!
अर्जुन,
मैं भी जानता था कर्ण का सत्य
कुंती को दिए उसके वचन के आगे
उसके रथ से मैंने तुम्हें दूर रखा
उसकी मृत्यु का कारण तुम्हें दिया
....
मेरे दुःख
मेरी विवशता का
तनिक भी एहसास है तुम्हें ?
एहसास है तुम्हें मेरी उस स्थिति का
जब मैंने द्रौपदी को भरी सभा में
मुझे पुकारते पाया  ...
धिक्कार है अर्जुन
तुम कभी गांडीव रख देते हो
कभी अपनी सारी सोच
खुद तक सीमित कर लेते हो !!
...
खैर,
कभी कर्ण की जगह खुद को रखो
जिसने समस्त पीड़ा झेलकर भी
कुंती को खाली हाथ नहीं लौटाया
पाँच पुत्रों की माँ होने का दान दिया
अपने पुत्र होने का धर्म इस तरह निभाया  ... 

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना नूतन वर्षाभिनन्दन अंक "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 04 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सियाचिन के परमवीर - नायब सूबेदार बाना सिंह - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. सच अपनी विवशता को पीछेे छोड़ कर दूसरे की विवशता को समझने वाले विरले होते हैं, महान होते है ...
    बहुत सुन्दर सार्थक चिंतन

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  4. सुन्दर व सार्थक रचना...
    नववर्ष मंगलमय हो।
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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